Thursday, November 1, 2007

उसका साथ हो ज़रूरी तो नही..

जीन्दा दील है हस कर दो गम सह लेंगे,हर गम मे उसका साथ हो ज़रूरी तो नही..
यूं तो वोह बहुत वाफशार है मगर,हर कदम पर वफ़ा करे ये ज़रूरी तो नही..
हौसले और भी भर जायेंगे शीक्स्त के बाद, जीत यहाँ सदा हमारी हो ये ज़रूरी तो नही..
शीद्दत-ऐ-गम मे इंसान रो भी देता है, सामने उसका अंचल हो ये ज़रूरी तो नही..
नज़रें थी बस क्या करे पत्थर हो गए,उसके बाद कीसी और को देखे ये ज़रूरी तो नही..
हमने हमेशा उन्हें दील से चाहा,वोह भी हमे चाहे दील से ये ज़रूरी तो नही..