Thursday, September 13, 2007

लफ्जों में कह ना सकूं भीन कह भी रह ना सकूं

लफ्जों में कह ना सकूं भीन कह भी रह ना सकूं
नशा ही नशा रात दीन है, ना पूछो यह कैसा प्यार है

हलकी सी बरसात में, पहली मुलाकात में,
पहली ही बार में दील को मेरे ले गई,
चाह्त के इकरार में अंजाना घम दे गई.
आई जब सामने जाने क्यों वोह डर गई पागल मुझको कर गई जानेमन जानेजा

ना जाने क्या बात है लगे की दीन मे रात है
नई है सुबह तो नई शाम अजब हाल मेरा यार है

मेरा दील मेरी जान मे यहाँ तू है कहाँ
मैं देखूं मुड्के जीधर,आए मुझे तू नज़र
कहती है चाहते दीवाना मैं हो गया
तेरी चाह्त में सनम नाजाने कब खो गया
यह कैसा है असर मुझको ना इतनी ख़बर कब जागा कब सो गया जानेमन जानेजा

लफ्जों में कह ना सकूं भीन कह भी रह ना सकूं
नशा ही नशा रात दीन है, ना पूछो यह कैसा प्यार है

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